सरकारी बैंकों के बड़े मर्जर की तैयारी एक बार फिर शुरू हो गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह संकेत दिया है कि सरकार का लक्ष्य केवल अलग-अलग सार्वजनिक बैंकों को आपस में जोड़ना नहीं है, बल्कि भारत को कुछ ऐसे बड़े और वर्ल्ड-क्लास बैंक देना है जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें। सरकार चाहती है कि PSU बैंकों का आकार, तकनीक, संचालन और प्रबंधन का ढांचा मजबूत हो और वे निजी क्षेत्र के बैंकों की तरह कुशलता से काम कर सकें।
छोटे बैंकों का बैंक ऑफ इंडिया में संभावित मर्जर
इस बार मर्जर के लिए कई कॉम्बिनेशन पर विचार किया जा रहा है। सबसे संभावित संयोजन यह माना जा रहा है कि छोटे सरकारी बैंक जैसे UCO बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र को बैंक ऑफ इंडिया में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि बैंक ऑफ इंडिया इस समूह में सबसे बड़ा है। एक दूसरा विकल्प यह है कि बैंकों को उनके काम करने के तरीके, टेक्नोलॉजी या क्षेत्र के आधार पर जोड़ा जाए। इस स्थिति में UCO बैंक और सेंट्रल बैंक को पंजाब नेशनल बैंक के साथ, बैंक ऑफ इंडिया को यूनियन बैंक के साथ और इंडियन ओवरसीज बैंक को इंडियन बैंक के साथ मिलाया जा सकता है।
यदि लक्ष्य केवल आकार बढ़ाना है, तो बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक का विलय एक बड़ा बैंक तैयार कर सकता है, जिसका जमा आधार 18-19 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। इससे यह SBI और HDFC बैंक के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा। वहीं, एक और बड़े विकल्प पर भी विचार चल रहा है: बैंक ऑफ बड़ौदा और यूनियन बैंक का मर्जर। इससे करीब 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक जमा आधार वाला बैंक बन सकता है, जो HDFC बैंक के स्तर के करीब होगा।
सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक मर्जर में असली चुनौती आकार बढ़ाने की नहीं, बल्कि संस्कृति और कामकाज के तरीके को एक करने की होती है। 2019 में सिंडिकेट बैंक के कनारा बैंक में विलय के केस में भी देखा गया था कि दोनों बैंक तकनीकी रूप से भले जुड़ गए लेकिन कर्मचारियों की सोच और कार्यशैली में एकरूपता लाने में समय लगा। इसलिए यह मर्जर केवल तकनीकी रूप से खातों और सिस्टम को जोड़ना नहीं, बल्कि लोगों, निर्णय लेने की प्रक्रिया और नेतृत्व की संस्कृति को एक करने का बड़ा कदम होगा।
कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केवल मर्जर से बैंक बड़े जरूर बनेंगे, लेकिन मजबूत और वर्ल्ड-क्लास तभी होंगे जब सरकार उनके संचालन में अधिक स्वतंत्रता देगी। पूर्व RBI गवर्नर वाई. वी. रेड्डी ने सुझाव दिया था कि यदि PSU बैंकों को कंपनियों के अधिनियम के तहत लाया जाए और सरकार अपनी हिस्सेदारी को 50% से कम करे, तो बैंकों को CAG और CVC के दायरे से बाहर लाया जा सकता है और बोर्ड अधिक पेशेवर तथा स्वतंत्र तरीके से काम कर सकेगा।
Reviewed by SBR
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November 12, 2025
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